Add To collaction

लेखनी कहानी -21-Feb-2023 बलिदान

भाग 2
जग्गी के जाने के बाद बनवारी सेठ और उसकी पत्नी की हालत ऐसी हो गई जैसे बिना जान के जीव की होती है । जग्गी दादा अपने साथ आशा को लेकर गया था और कहकर गया था कि एक करोड़ दे जाना 'लोंडिया' छुड़ाकर ले जाना । अब प्रश्न यह था कि इतनी जल्दी रुपयों का इंतजाम कैसे होगा ? बनवारी सेठ की हालत तो मरणासन्न थी । उसकी पत्नी की स्थिति भी कुछ खास अच्छी नहीं थी । बनवारी सेठ के लड़के मोहन पर अब सारी जिम्मेदारी आ गई थी । मोहन अभी बारहवीं कक्षा में पढ रहा था इसलिए वह अभी कच्चा खिलाड़ी था । उसने सबसे पहले बनवारी सेठ के मित्र और रिश्तेदारों को फोन किया और सारी स्थिति बताई । सब लोग दौड़े दौड़े आये और बनवारी सेठ तथा उसकी पत्नी लक्ष्मी को अस्पताल में भर्ती करवा दिया । 

अब सभी रिश्तेदार आशा को छुड़ाने के लिए रुपयों की व्यवस्था करने में जुट गये । आज के जमाने में दुख के समय जब परछाई भी साथ छोड़ जाती है तब सेठ बनवारी का कौन साथ दे ? जग्गी दादा के डर के मारे वैसे भी हर किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी । बनवारी सेठ और लक्ष्मी के भाइयों और बहनों का इम्तिहान था यह । दोनों ही परिवारों ने बिना आगा पीछा देखे बनवारी सेठ की भरपूर मदद की । 24 घंटों में रकम का बंदोबस्त हो गया । बनवारी सेठ का भाई और उसका साला दोनों एक करोड़ रुपए लेकर जग्गी दादा के अड्डे पर आ गये । 

दोनों की पूरी तलाशी ली गई । जग्गी दादा दिल का बहुत उदार था । उसके यहां तो रंगदारी देने वालों का तांता लगा रहता था इसलिए उसने बहुत सारी बैठकें बना रखी थी जिससे किसी को अन्य किसी के बारे में कोई जानकारी ना मिल पाये । हर बैठक में चार चार बाउंसर खड़े थे और एक नोट गिनने की मशीन लगी हुई थी । नोट गिनने की मशीन से नोट गिने गये । अंदर संदेश भेजा गया । जग्गा किसी 'डील' में व्यस्त था । जब वह फ्री हुआ तब इन्हें ऐन्ट्री दी गई । 

जग्गी के कमरे की सजावट देखकर ये लोग चौंक गये । जब हराम का पैसा आता है तब वह विलासिता में ही 'घुल' जाता है । उन लोगों ने ऐसा भव्य कमरा आज तक नहीं देखा था । मेहनत की खाने वाले टूटे फूटे झोंपड़े में पड़े रहते हैं और 'रंगदारी' वसूलने वालों के नौकर भी आलीशान कोठियों में रहते हैं । जीवन का एक कड़वा सच आज उन्होंने देख लिया था । 

रुपयों से भरी अटैची लेकर उसने अपने गुर्गे की ओर देखा । गुर्गा उसका इशारा समझ गया और उसने जग्गी दादा को इशारे से ही आश्वस्त कर दिया कि रुपए गिन लिये है । जग्गी दादा ने हाथ से कुछ इशारा किया और एक गुर्गा आशा को लेकर आ गया । आशा की ओर देखकर जग्गी दादा बोला "बता इनको ! तेरे साथ अगर किसी ने कुछ भी किया है तो निसंकोच कह दे । कल को मुझ पर और मेरी गैंग को बदनाम मत करना" । 
आशा ने अपनी गर्दन हिला कर बता दिया था कि वह यहां सुरक्षित रही है । उन दोनों को यह जानकर संतोष हुआ कि आशा सही सलामत है । इतने में जग्गी दादा बोल पड़ा 
"जग्गी दादा जब एक बार जुबान दे देता है तो दे देता है , फिर वह उसके लिए किसी भी हद तक जा सकता है । हम जो करता है सब खुलेआम करता है जैसा कि बनवारी सेठ के घरवालों के सामने उसी के घर में इसी के साथ किया था । लेकिन जब वचन दे दिया तो दे दिया । लो, संभालो अपनी लाडली" । उसने आशा को जाने का इशारा कर दिया । आशा इधर आ गई  । आशा को लेकर दोनों जने घर आ गये । 
अंजू और सुषमा दोनों लड़कियां उस वाकये को देखकर बुरी तरह भयभीत हो गई थीं । सुषमा को तो अपने घर जाने में भी डर लग रहा था । उसे लग रहा था कि चप्पे चप्पे पर जग्गी या उसके गुर्गे  बैठे हुए हैं उस जैसी 'कमसिन कली' को मसलने के लिए । उनसे बचना नामुमकिन है । लेकिन घर तो जाना ही था इसलिए वह दो चार लोगों के संरक्षण में अपने घर चली गई । 

अंजू और उसके परिवार ने सब कुछ अपनी आंखों से वह 'वीभत्स' मंजर देखा था और मानवता की 'चीख पुकार' सुनी थी । अपनी लाचारी और बेबसी पर रोना भी आ रहा था पर शायद "लोकतांत्रिक व्यवस्था" में यह सब तो आम बात है । वोटों के सहारे के लिए गुंडे बदमाश पाले जाते हैं और उनका इस्तेमाल चुनावों में धड़ल्ले से किया जाता है । कहने को तो यह लोकतंत्र है पर बच्चा बच्चा जानता है कि वोट कैसे पड़ते हैं ? चुनाव आयोग यद्यपि बहुत मेहनत कर रहा है मगर निष्पक्ष मतदान आज भी मृग मरीचिका सा लगता है । धन और बल की ताकत का जमकर उपयोग होता है इसीलिए तो बहुत सारे गुंडे, मवाली भी चुन लिये जाते हैं । कड़वा है पर सत्य यही है । 

कोई भी व्यक्ति रातों रात गुंडा मवाली नहीं बनता है । उसे गुंडा मवाली बनाता है सिस्टम । पुलिस पैसे खाती है इसलिए केस दर्ज नहीं करती । अगर दर्ज कर भी ले तो अनुसंधान में इतनी खामी छोड़ती है जिसका फायदा अपराधी उठाते हैं । कोर्ट में वकील पैसे की खातिर नैतिकता, कानून सब कुछ परे रखकर इन गुंडों को छुड़ाने के लिए जी जान लड़ा देते हैं । इन गुंडों के आतंक से डरकर गवाह पलट जाते हैं और गवाही नहीं देते हैं ।  कोर्ट भी वकीलों के दबाव में काम करती हैं और सबूतों के अभाव में अपराधी छूट जाते हैं । इन अपराधियों पर जातिगत या धार्मिक आधार वाले नेताओं का भी वरदहस्त होता है । इस प्रकार गुंडे, पुलिस, वकील, नेताओं का गठजोड़ बन जाता है और यही "गिरोह" पूरे सिस्टम पर राज करता है । जनता बेचारी पिसती है और बाकी सब मौज उड़ाते हैं । 

क्रमश : 
(शेष अगले अंक में) 

श्री हरि 
22.2.23 

   17
7 Comments

RISHITA

29-Sep-2023 07:16 AM

Fantastic

Reply

बहुत खूब

Reply

Hari Shanker Goyal "Hari"

27-Feb-2023 08:12 AM

💐💐🙏🙏

Reply